मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जन प्रतिनिधियों—जैसे सांसदों, विधायकों और अन्य—द्वारा भेजे गए पत्रों और शिकायतों की अनदेखी करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने शीर्ष सरकारी अफसरों को इस संबंध में स्पष्ट और कठोर हिदायतें दी हैं।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद, राज्य के संसदीय कार्य विभाग ने प्रमुख सचिवों, पुलिस महानिदेशक (DGP), संभागीय आयुक्तों और जिला अधिकारियों समेत तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को यह निर्देश भेज दिए हैं।
यह कदम तब उठाया गया जब कई सांसदों और विधायकों ने शिकायत की कि जिला स्तर पर अधिकारी उनके पत्रों, सुझावों और स्थानीय समस्याओं से जुड़ी सिफारिशों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
हाल ही में, पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने मीडियाकर्मियों से बातचीत में दावा किया कि जिला मजिस्ट्रेट जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा करते हैं और विधायक अपना काम करवाने के लिए डीएम के पैर छूने तक चले जाते हैं।
अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे हर सरकारी कार्यालय में जनप्रतिनिधियों के पत्रों को दर्ज करने के लिए पत्राचार रजिस्टर बनाए रखें। उन्हें तत्काल जवाब भेजने और मामले के समाधान की स्थिति से संबंधित प्रतिनिधि को अवगत कराने के लिए कहा गया है, ताकि बार-बार पत्राचार की कोई गुंजाइश न रहे।
मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार, जो भी अधिकारी या कर्मचारी जनप्रतिनिधियों के पत्रों की अनदेखी करेगा, उसके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
हाल के वर्षों में, जिलों में अधिकारियों द्वारा विधायकों और सांसदों की चिंताओं पर ध्यान न देने का मुद्दा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा तथा मुख्यमंत्री के साथ आरएसएस के शीर्ष पदाधिकारियों के बीच हुई समन्वय बैठकों में कई बार उठाया गया। विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
संसदीय कार्य विभाग ने पिछले वर्ष अक्टूबर में हस्तक्षेप करते हुए सभी अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे, जिसमें सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों द्वारा की गई शिकायत पर कार्रवाई की गई थी कि किस प्रकार अधिकारी अपना महत्व जताने के लिए उन्हें अपमानित करते हैं।
जन प्रतिनिधियों ने यहां तक नाराजगी जताई कि जब वे अधिकारियों से मिलने जाते हैं तो उन्हें साधारण कुर्सियां दी जाती हैं जबकि अधिकारी स्वयं सोफे या ऊंची कुर्सी पर सफेद तौलिया बिछाकर बैठते हैं।
मामला इतना बढ़ गया कि तत्कालीन मुख्य सचिव को प्रमुख विभागों के अधिकारियों और जिलों के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी।
मुख्य सचिव ने आदेश दिया था कि जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का व्यवहार न किया जाए तथा जब वे अधिकारियों से मिलने जाएं तो उन्हें उचित सम्मान दिया जाए।